अक्षय फल
हिन्दू पंचांग के
अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। इस बार यह
पर्व 14 मई को है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ काम किए जाते है
उसका अक्षय फल मिलता है । अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं
। पौराणिक ग्रंथों के
अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल
मिलता है।
इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है । अक्षय का अर्थ होता
है जो कभी खत्म न हो ऐसी तिथि और इसीलिए ऐसा कहा जाता है की अक्षय
तृतीया वह तिथि है जिसमे सौभाग्य और शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता । इस दिन होने वाले कार्य मनुष्य के जीवन को कभी न खत्म
होने वाले शुभ फल प्रदान कराते है | इसीलिए यह कहा जाता है की इस दिन मनुष्य जीतने
भी पुण्य कर्म तथा दान करता है | उसे उसका शुभ फल अधिक मात्र मे मिलता है और शुभ
फल का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है |
महत्व
यह सर्वसिद्ध मुहूर्त
है। इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह,
गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड,
वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था,
समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा
किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप
नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप,
हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है।
यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान,
जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़
जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि इस दिन
मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन
से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते
हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः इस दिन अपने
दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान
माँगने की परंपरा भी है।
कैसे करे पूजन ?
अक्षय तृतीया के दिन
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने
के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है।
नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल
अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को
दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है
कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ,
भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन
किया जाता है। यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे,
कुल्हड, सकोरे, पंखे,
खडाऊँ, छाता, चावल,
नमक, घी, खरबूजा,
ककड़ी, चीनी, साग,
इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का
दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक
विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा,
वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। इस दिन
लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या
पीले गुलाब से करना चाहिये।
सर्वत्र शुक्ल पुष्पानी प्रशस्तानी सदार्चने |
दानकाले च सर्वत्र मंत्र मेत मुदिर्येत ||
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