Tuesday, 30 November 2021
Monday, 29 November 2021
वसंत पंचमी-सरस्वती कृपा प्राप्ती दिन
गायत्री महाशक्ति की सतोगुणी शक्ति को सरस्वती कहते हैं। मानसिक जड़ता मिटाने एवं निर्मल बुद्धि प्रदान करने में विद्या की अधिष्ठात्री इसी महाशक्ति का हाथ होता है। बुद्धि-बैभव की, वाणी की, विद्या की, प्रतिभा की देवी सरस्वती ही है। मस्तिष्कीय क्षमताओं की अभिवृद्धि, बौद्धिक विकास, प्रतिभा प्रखरता, स्मरणशक्ति की अभिवृद्धि, परीक्षा में उत्तीर्ण होने और अच्छे अंक लाने के लिए सरस्वती गायत्री का प्रयोग किया जाता है। • असफलता, निराशा, चिंता और खिन्नता उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करके सफलता का आशाजनक वातावरण उत्पन्न करने की स्थिति विनिर्मित करने में सरस्वती शक्ति का विशेष महत्त्व है। सरस्वती गायत्री मंत्र द्वारा विशिष्ट प्रकार की औषधियों से बने हविद्रव्य से हवन करने पर मनोवांछित दिशा में सफलता मिलती है। यज्ञ द्वारा सरस्वती महाशक्ति का आह्वान, अनुमोदन करके उनके अनुदानों से प्रत्येक आयु वर्ग का व्यक्ति लाभान्वित हो सकता है। सरस्वती गायत्री मंत्र इस प्रकार है
" ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।
शुभम भवतु
Dr.Suhas Rokde
Medical Astrologer
www. astrotechlab.com
Monday, 22 November 2021
पिप्पला पिपल शनी महत्ता
श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक कि जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।
एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।
तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।
बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?
नारद- शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।
नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।ब्रह्मा जी से वर्य मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर्य मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-
1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।
2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।
ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।
सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का अकूत भंडार है...
Regards
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Saturday, 6 November 2021
🚩घोंगडी हे पवित्र वस्त्र🚩
🚩घोंगडी हे पवित्र वस्त्र🚩
"वीर्यस्पृष्टं शवस्पृष्टं स्पृष्टं मूत्रपुरीषयोः । रजस्वलादिसंस्पृष्टमाविकन्तु न दुष्यति ।।"
म्हणजे घोंगडी वस्त्रास वीर्य, प्रेत, मल, मूत्र व रजस्वला यांचा स्पर्श झाला तरी ते वस्त्र दूषित होत नाही असे शास्त्र वचन आहे.
#धार्मिकदृष्ट्या_पूर्वीपासून_घोंगडीचे_महत्व:🕉️🔱☮️
#प्रत्येक_साधकाकडे_घोंगडी_असणे_गरजेचे_असते
आपण करत असलेल्या साधनेला उच्च स्थरावर घेऊन जायचे असेल तर साधना घोंगडीवर करावी.
पूर्वी ध्यानधारणा करण्यासाठी , धार्मिक अनुष्ठान करण्या साठी घोंगडी वापराला अनन्य साधारण महत्व होत. तसा उल्लेखही पूर्वीचा माहितीत आढळतो. स्वतः शिव मल्हारांचा पेहरावा मध्ये घोंगडीचा वापर होता.
अध्यात्मिक साधना, ध्यान-धारणा, योग आणि मंत्राचे अनुष्ठान करण्यासाठी असलेले घोंगडीचे महत्व हे ऋषींनी आणि संत महात्म्यांनी पुराणकाळापासून वर्णलेले आहे. शरीरातील उर्जा आणि तापमान नियंत्रित राहत असल्याने घोंगडी वर केलेल्या साधनेतून अत्युच्च मानसिक समाधान मिळते. श्री गुरुचरित्र पारायण, श्री गुरुलीलामृत, श्री गजानन विजय, श्री साईं सत्चरित्र, श्री दुर्गा सप्तशती आणि इतर सर्व आध्यात्मिक साधना व मंत्रांच्या अनुष्ठानासाठी घोंगडी चा उपयोग करावा. वारकरी संप्रदाय मध्येही घोंगडी वापरला अत्यंत महत्व आहे. पितृदोष असणाऱ्यांनी काळे घोंगडे दान करावे कारण घोंगडे दान हे सर्वश्रेष्ठ दान आहे पितृदोष असणाऱ्यांना. महालक्ष्मी पूजनासाठी सुद्धा घोंगडे वापरले जाते.
#घोंगडीचे_आरोग्य_विषयक_फायदे-
▶️पाठदुखी, कंबरदुखी, वात, सांधेदुखीमध्ये यांपासून आराम मिळतो. यामध्ये जेण (घोंगडीचाच एक जाड प्रकार) वापरणे जास्त योग्य ठरते.
▶️झोप येत नसणार्यांसाठी तर हे एक उत्तम औषधच आहे घोंगडीवर झोपल्याने शांत झोप लागते.
▶️उच्च रक्तदाब नियंत्रणात येण्यास मदत होते.
▶️कांजण्या, गोवर, तापातही घोंगडीचा वापर करतात.
▶️घोंगडीवर झोपल्याने लहान मुलांचा अस्थमा दूर होतो. .
▶️हिवाळ्यात ऊब तर उन्हाळ्यात थंडावा देते.
▶️घोंडीवर झोपल्याने साप, विंचू, मुंगी, गोम, मधमाशा, ढेकूण जवळ येत नाहीत.
▶️अर्धांगवायूचा धोका टळतो..आणि मधुमेह कमी होण्यास मदत होते.
आसन २५० पासून ७५० पर्यंत उपलब्ध आहेत।
१००० पासून ३००० पर्यंतच्या घोंगड्या उपलब्ध आहेत.
🙏धन्यवाद🙏
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घोंगडी बद्दल अधिक माहिती जाणून घेण्यासाठी संपर्क
7058569530
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