Wednesday, 9 March 2022

Pudina : पुदीना के फायदे, उपयोग और औषधीय गुण | Benefits of Pudina

Pudina : पुदीना के फायदे, उपयोग और औषधीय गुण | Benefits of Pudina

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पुदीना का परिचय (Introduction of Pudina)

पुदीना (Pudina) सबसे ज्यादा अपने अनोखे स्वाद के लिए ही जाना जाता है। पुदीने की चटनी (pudina chatni) न सिर्फ खाने का जायका बढ़ाती है बल्कि स्वास्थ्यवर्द्धक भी होती है। आयुर्वेद में सदियों से पुदीने का इस्तेमाल औषधि के रुप में हो रहा है। सामान्य तौर पर पुदीने का उपयोग (pudina benefits in hindi), दंत-मंजन, टूथपेस्ट, चुइंगगम्स, माउथ फ्रेशनर, कैंडीज, इन्हेलर आदि में किया जाता है। इसके अलावा भी आयुर्वेद में  पुदीने का प्रयोग अन्य रोगों के इलाज में भी होता है। चलिये पुदीने के बारे में विस्तार से आगे जानते हैं।

पुदीना क्या है? (What is Mint in Hindi?)

पुदीना का पौधा की कई प्रजातियां होती हैं, लेकिन औषधि और आहार के लिए मेंथा स्पीक्टा लिन्न( Mentha spicata Linn.) का ही प्रयोग किया जाता है। इस पुदीने को पहाड़ी पुदीना भी कहा जाता है; क्योंकि यह पहाड़ी इलाके में अधिक होता है। आयुर्वेद के अनुसार, पुदीना (dried mint) कफ और वात दोष को कम करता है, भूख बढ़ाता है। आप पुदीना का प्रयोग मल-मूत्र संबंधित बीमारियां और शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए भी कर सकते हैं। यह दस्त, पेचिश, बुखार, पेट के रोग, लीवर आदि विकार को ठीक करने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है।

अन्य भाषाओं में पुदीना के नाम (Name of Mint in Different Languages)

पुदीना का पौधा का वानास्पतिक नाम (botanical name of mint)) (Mentha spicata Linn(मेन्था स्पाइकेटा) Syn-Mentha viridis Linn. है, और यह Lamiaceae (लेमिएसी) कुल का है। पुदीना को दुनिया भर में अनेक नामों से जाना जाता है, जो ये हैंः-

Mint in –

  • Pudina Name in Sanskrit-पूतिहा, रोचिनी, पोदीनक;
  • Pudina Name in Hindi-पहाड़ी पुदीना, पुदीना;
  • Pudina Name in Gujarati-फूदीनो (Phudino);
  • Pudina Name in Telugu-पुदीना (Pudina);
  • Pudina Name in Tamil-पुदीना (peppermint leaves in tamil);
  • Pudina Name in Bengali-पुदीना (Pudina);
  • Pudina Name in Nepali-बावरी (Bawri);
  • Pudina Name in Punjabi-पहाड़ी पोदीना (Paharipodina);
  • Pudina Name in Marathi-पुदिना (Pudina)
  • Pudina Name in English-गॉर्डेन मिंट (Garden mint), लैंब मिंट (Lamb mint), Spear mint (स्पिअर मिंट)
  • Pudina Name in Arabic-फूजनज (Fujnaj), नान्ना (Naana)
  • Pudina Name in Persian-पूदनेह् (Pudneh), नागबो (Nagbo)।

पुदीने के फायदे (Pudina Benefits and Uses in Hindi)

बहुत कम लोगों को ही पता है कि पुदीना ऐसी जड़ी बूटी है जो औषधि के रुप में काम करती है। लेकिन यह किन-किन बीमारियों में और कैसे काम आता है , चलिये इनके बारे में विस्तार से जानते हैंः-

बाल झड़ना रोकने में फायदेमंद पुदीना (Pudina Beneficial in Hair Loss in Hindi)

पुदीना अपने वातशामक गुण के कारण बालों के रूखेपन को कम करने में सहयोग देता है । ऐसा होने से बालों की रूसी एवं उनका बेजान होकर झड़ना या टूटना कम होता है, जिससे बाल प्राकृतिक रूप से बढ़ने लगते हैं।

और पढ़ें – हॉट फ्लैशेज में पुदीने का तेल फायदेमंदऔर पढ़ें – बालों के लिए गुंजा के फायदे

कान के दर्द में पुदीने के प्रयोग से फायदे (Uses of Pudina to Treat Ear Pain in Hindi)

कान संबंधी समस्याओं जैसे कान दर्द आदि में पुदीना के लाभ से जल्दी आराम मिलता है। कभी-कभी ठंड लगने पर या कान में पानी चले जाने पर कान में दर्द होने लगता है। ऐसे में पुदीना का रस कान में डालने से आराम मिलता है। आपको पुदीना के पत्ते का रस निकालना है, और इसे 1-2 बूंद कान में डालना है।


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सिरदर्द से दिलाये राहत पुदीने की चाय (Pudine Tea Benefit to Get Relief from Headache in Hindi)

अक्सर देखा गया है की पाचन शक्ति ख़राब होने के कारण सर में दर्द होता है । पुदीने की चाय ऐसे में बहुत फायदेमंद सिद्ध हो सकती है, क्योंकि यह अपने दीपन – पाचन गुण के कारण खाने को अच्छी प्रकार से हजम करने में मदद करती है, जिससे आपका पाचन तंत्र मजबूत होता है ।

और पढ़ें: सिर के दर्द में फायदेमंद गम्भारी

मुंह के छाले की परेशानी करे कम पुदीना का पत्ता (Mint leaves Heals Mouth Ulcer in Hindi)

मुंह के छाले की परेशानी में पुदीने के पत्ते का काढ़ा बना लें। इससे गरारा करने से मुंह के छाले की समस्या ठीक होती है।

और पढ़ें: मुँह के छाले में लीची के फायदे

दांतों के दर्द में पुदीना के फायदे (Pudina Benefits in Toothache in Hindi)

दाँत दर्द की समस्या किसे नहीं होती।  पुदीने के पत्ते का चूर्ण बनाकर दांत को मांजने से दांतों का दर्द कम होता है। पुदीने के औषधीय गुण (pudina ke fayde) दाँत दर्द को कम करने में मदद करते हैं। पुदीना के लाभ दर्द से राहत दिलाने में बहुत मदद करता है।

और पढ़े – दांतों के लिए अपामार्ग के फायदे

सांस की नली की सूजन करे कम पुदीना (Benefit of Pudina to Get Rid of Respiratory  Tract Inflammation in Hindi)

ठंड लगने पर सांस की नली अक्सर सूज जाती है और फिर गले में दर्द होने लगता है। इससे आराम पाने के लिए पुदीने के पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली सेवन करने से सांस की नली की सूजन से आराम मिलती है।

अपच की समस्या में पुदीने के फायदे (Benefit of Pudina in Indigestion in Hindi)

अक्सर पेट में गड़बड़ी होने पर अपच की समस्या होती है। इसमें नींबू, पुदीना तथा अदरक के 100-100 मिली रस लें। इसमें दोगुना (200 ग्राम) खांड़ मिला लें। इसे चांदी के बर्तन में पका लें। इस काढ़ा को 20 मिली मात्रा में सेवन करें। इससे अपच की समस्या ठीक होती है।

और पढ़े: अपच में करिश्माई के फायदे

और पढ़ें – हॉट फ्लैशेज में पुदीने का तेल फायदेमंदभूख बढ़ाये पुदीना (Pudina to Treat Loss of Appetite in Hindi)

कभी-कभी दवा के कारण, या लंबे समय से बीमार रहने के कारण भूख कम लगने लगती है। अगर आप भी इस समस्या से ग्रस्त हैं तो इसके लिए 6-6 ग्राम वृक्षाम्ल, पुदीना, सोंठ तथा मरिच, 50 मिली अनार का रस लें। इसके साथ ही, 3 ग्राम पिप्पली, 1 ग्राम लौंग, 3 ग्राम बड़ी इलायची, 18 ग्राम सेंधा नमक और 35 ग्राम जीरा लें। इनकी जितनी मात्रा हुई, उतनी मात्रा में ही इसमें मिश्री मिला लें। इसका चूर्ण बना लें। इसे 1-5 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इससे भूख ना लगने की परेशानी ठीक होती है।

और पढ़ें: पिप्पली के फायदे

उल्टी से दिलाये राहत पुदीने का सेवन (Mint Benefits in Vomiting in Hindi)

उल्टी को रोकने के लिए पुदीना का सेवन करना लाभ पहुंचाता है। अक्सर एसिडिटी होने पर, या दवा के साइड इफेक्ट के कारण, या फिर अन्य कारणों से भी उल्टी होने लगती है। अगर आप भी उल्टी की परेशानी से ग्रस्त हैं तो पुदीना के पत्तों का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में पीने से उल्टी बन्द हो जाती है।

और पढ़ें: कालमेघ के सेवन से एसिडिटी में लाभ

पेट की गड़बड़ी करे दूर पुदीने का सेवन (Mint benefits for Abdominal Disorder in Hindi)

सामान्य तौर पर पेट की गड़बड़ी खान-पान में बदलाव की वजह से होता है। 10-15 मिली पुदीना के काढ़े में नमक तथा मरिच मिला लें। इसे पीने से पेट का रोग ठीक होता है। कभी-कभी जंक फूड खाने या मसालेदार खाना खाने से बदहजमी हो जाती है और पेट में दर्द होने लगता है। पुदीना का काढ़ा या पुदीना की चाय बनाकर पिलाने से आराम मिल जाता है।

और पढ़े: पेट के रोगों में मेथी के फायदे

पुदीना के इस्तेमाल से लगती है दस्त पर रोक (Mint Juice to Fight Diarrhoea in Hindi)

पुदीना के पंचांग का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में सेवन करें। इससे अपच और दस्त की समस्या ठीक होती है।

अस्थमा में फायदेमंद पुदीना (Mint Beneficial in Asthma in Hindi)

पुदीना अपने वात -कफ शामक गुण के कारण अस्थमा में भी लाभदायक होता है । इसकी तासीर गर्म होने के कारण फेफड़ों में जमे बलगम को पिघला कर उसे बाहर निकालने में सहायता करती है । इससे इस बीमारी के लक्षणों के कम होने में सहायता मिलती है ।

और पढ़े: दमा में कमरख से लाभ

मूत्र विकार में फायदेमंद पुदीने का प्रयोग (Uses of Pudina in Urinary Disorder in Hindi)

अगर पेशाब करते वक्त दर्द या जलन होता है पुदीने का इस तरह सेवन करने से लाभ मिलेगा।  500 मिग्रा पुदीना के पत्ते में 500 मिग्रा काली मिर्च को पीस लें। इसे छानकर मिश्री मिलाकर पुदीना की चाय की तरह पिएं। इससे मूत्र विकार ठीक होते हैं।

पुदीना के पत्तों का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली की मात्रा में पीने से गठिया का दर्द कम होता है।

और पढ़े: पेशाब की समस्या में खीरा के फायदे

श्लीपद या हाथीपांव रोग में फायदेमंद पुदीना ( Pudina to Get Relief from Filaria in Hindi)

श्लीपद या हाथीपांव होने पर पैर हाथी की तरह फूल जाता है, और दर्द के कारण चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है। हाथीपांव के दर्द से राहत पाने के लिए पुदीना का काढ़ा बना लें। इसे 15-20 मिली की मात्रा में सेवन करें।

और पढ़े – हाथीपाँव में निर्गुण्डी के फायदे

घाव सूखाने के लिए पुदीना का प्रयोग (Pudina Heals Ulcer in Hindi)

पुदीना के पत्ते को पीसकर लेप लगाने से ना सिर्फ घाव से आने वाला दुर्गंध कम होता है, बल्कि घाव भी जल्दी भरता है। इसके अलावा पुदीना के पंचांग का काढ़ा बना लें। इससे घाव को धोने से भी घाव जल्दी भरता है।

त्वचा रोग में पुदीना के फायदे (Benefits of Pudina in Skin Disease in Hindi)

रैशेज, मुंहासे या घाव होने पर त्वचा पर काले-धब्बे पड़ जाते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए पुदीना के पत्तों को पीस लें। इसे दाग वाले जगह पर लगाने से काले धब्बे मिट जाते हैं। त्वचा संबंधी किसी भी समस्या में पुदीना के फायदे (pudina ke fayde)असरदार तरीके से काम करते हैं।

और पढ़े: गोरे होने के घरेलू नुस्खे

मासिक धर्म में ऐंठन और दर्द को दूर करने में पुदीना के फायदे (Pudina Beneficial in Menstural Cramp in Hindi)

मासिक धर्म में दर्द और ऐंठन यानि क्रैम्प का कारण बढ़ा हुआ वात दोष होता है  । पुदीना के सेवन से हम इस दर्द और ऐंठन को दूर कर सकते हैं, क्योंकि इसमें वातशामक और उष्ण गुण होते है जो दर्द और ऐंठन में राहत देते हैं।

और पढ़ें – मासिक धर्म विकार में सारिवा के फायदे

बुखार में फायदेमंद पुदीने का सेवन (Uses of Mint to Treat Fever in Hindi)

मौसम के बदलाव के कारण बुखार आने पर पुदीना के पत्तों का काढ़ा बनाकर पिएं। इससे बुखार ठीक हो जाता है। इसके अलावा पुदीने की चटनी बनाकर खिलाने से भी बुखार, और बुखार के कारण होने वाली भूख की कमी ठीक होती है। पुदीना के औषधीय गुण बुखार से जल्दी आराम दिलाने में मदद करते हैं।

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शरीर की जलन में फायदेमंद पुदीना का उपयोग (Benefit of Pudina to Get Rid of Burning Sensation in Hindi)

शरीर की जलन से छुटकारा पाने के लिए पुदीने के पत्तों का काढ़ा बना लें। इसे 15 मिली पीने से जलन कम होता है। शरीर के जलन को कम करने  में पुदीना के औषधीय गुण ( pudina ke fayde) फायदेमंद तरीके से काम करता है।

और पढ़ें – हॉट फ्लैशेज में पुदीने का तेल फायदेमंदऔर पढ़ें – हॉट फ्लैशेज में पुदीने का तेल फायदेमंदपुदीना के इस्तेमाल से सूजन का इलाज (Mint to Treat Inflammation in Hindi)

अगर शरीर के किसी अंग में सूजन के कारण दर्द हो रहा है तो पुदीने का प्रयोग इस तरह करने से आराम मिलता है।  सूजन होने पर सूखा पुदीना के पत्ते का सिरके में पीस लें। इसका लेप करने से कफ दोष के कारण होने वाली सूजन ठीक होती है।

बिच्छू के डंक मारने पर पुदीना का प्रयोग ( Pudina for Scorpion Bite in Hindi)

बिच्छु के काटने पर जो दर्द और जलन होता है, उससे राहत दिलाने में पुदीना मदद करता है। इसके लिए सूखा पुदीना के पत्तों को पीस लें। जिस जगह पर बिच्छु ने काटा है, वहां लगाने से दर्द और जलन कम होता है।

पुदीना का उपयोगी भाग (Useful Part of Pudina)

आयुर्वेद में पुदीना का पत्ता और पंचांग का प्रयोग सबसे ज्यादा होता है।

पुदीना का इस्तेमाल कैसे करें? (How to Use Pudina in hindi?)

बीमारी के लिए पुदीना का सेवन और इस्तेमाल कैसे करना चाहिए, इसके बारे में पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए पुदीना का उपयोग कर रहे हैं, तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।

पुदीना के अधिक सेवन से साइड इफेक्ट (Side Effects of Pudina)

पुदीना के अधिक सेवन से ये साइड इफेक्ट भी हो सकते हैंः-

  • किडनी विकार
  • आंत विकार
  • सेक्स करने की इच्छा में कमी आदि।

पुदीना कहां पाया या उगाया जाता है (Where is Pudina Found or Grown?)

भारत में प्रायः सभी स्थानों पर पुदीना की खेती की जाती है। यह बाग-बगीचों तथा घरों में भी लगाया जाता है। ईरान तथा अरब आदि देशों में पुदीना का इस्तेमाल बहुत सालों से किया जा रहा है।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

कोरोना से ठीक होने के बाद होने वाली समस्याएं और उनसे बचाव के उपाय

कोरोना से ठीक होने के बाद होने वाली समस्याएं और उनसे बचाव के उपाय

अभी भी पूरा विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरी तरह उबर नहीं पाया है. कुछ महीनों के अंतराल पर वायरस का कोई न कोई नया वैरिएंट सामने आ रहा है और लोग उसकी चपेट में आ रहे हैं. जहाँ कुछ महीने पहले तक डेल्टा वैरिएंट को काफी खतरनाक माना जा रहा था वहीँ अब हर जगह ‘ओमिक्रोन’ वैरिएंट की चर्चा है. आंकड़ों के अनुसार कोविड से रिकवर होने वाले लोगों की संख्या में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है.

Post Covid Symptoms in Hindi

कोरोना महामारी से उबरने के बाद भी कई लोगों को बहुत से अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है. कुछ लोग कई दिनों तक खांसी से परेशान रह रहे हैं वहीँ अधिकांश लोगों के बाल तेजी से झड़ने लग रहे हैं. इसके अलावा भी कई अन्य समस्याएं देखने को मिल रही हैं. इस लेख में हम आपको कोविड से ठीक होने के बाद होने वाली समस्याओं और उनसे बचने के आयुर्वेदिक उपायों के बारे में बता रहे हैं :

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कोविड से रिकवर होने के बाद होने वाले साइड इफ़ेक्ट (Side Effects after Covid Recovery in Hindi)

कोविड से रिकवर होने के बाद भी कई लोगों की शिकायतें आ रही हैं कि उनके बाल बहुत झड रहे हैं या शरीर की कमजोरी कई हफ़्तों तक ठीक नहीं हो रही है. वहीँ डायबिटीज के मरीजों में शुगर का लेवल अनियंत्रित होना या स्ट्रेस बढ़ना भी इसका आम साइड इफ़ेक्ट देखा गया है. ऐसे में यह ज़रूरी है कि आप अपने खानपान और स्वास्थ्य का ध्यान रखें एवं समय-समय पर ज़रूरी जांच करवाते रहें.

अगर आप कोविड से ठीक होने के बाद अब इन समस्याओं से परेशान हैं तो इस लेख में बताए गए घरेलु नुस्खों को आजमाएं. इन घरेलु उपचारों की मदद से शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है और इन समस्याओं से जल्दी राहत मिलती है.

लंबे समय तक खाँसी की समस्या बने रहना (Persistent cough for a long time)

कोविड संक्रमित होने पर खांसी आना इस संक्रमण का मुख्य लक्षण बताया गया है, लेकिन जब लोग इस बीमारी से ठीक हो जा रहे हैं तब भी कुछ लोगों की खांसी कई हफ़्तों तक ठीक नहीं हो रही है. अगर आप भी खांसी से परेशान हैं तो नीचे बताए गए घरेलु उपचार अपना सकते हैं :

Cough

खांसी ठीक करने के घरेलू उपाय (Home remedies for Cough in Hindi)

एक गिलास दूध में एक चुटकी हल्दी पाउडर डालकर कुछ देर तक उबालें और बाद में इसे गुनगुना होने पर पिएं. इस गुनगुने दूध का दिन में दो बार सेवन करें.

अगर आपको सूखी खांसी हो रही है तो मुलेठी के चूर्ण का उपयोग करें.

शरीर में कमजोरी या थकावट (Weakness or Tiredness)

कोरोना वायरस, शरीर को बहुत हद तक अंदर से कमजोर कर देता है. संक्रमण के दौरान तो कमजोरी इतनी बढ़ जाती है कि मरीज को चलने फिरने में कठिनाई होने लगती है. संक्रमण से ठीक होने के बाद भी कई लोग काफी दिनों तक तेज थकान या कमजोरी महसूस करते हैं. आइए जानते हैं कि इससे कैसे निजात पाएं :

Body Weakness

कमजोरी दूर करने के घरेलू उपाय (Home Remedies for Weakness in Hindi)

अगर आप कोविड संक्रमण के बाद शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो गए हैं तो इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपनी डाइट में पौष्टिक चीजों का सेवन बढ़ा दें. पौष्टिक आहार जैसे कि फल, हरी सब्जियां आदि शरीर को पर्याप्त मात्रा में उर्जा देती हैं. इसके साथ ही सुबह शाम एक-एक चम्मच च्वयनप्राश का सेवन करें.

बालों का तेजी से झड़ना (Post Covid Hair Fall)

कोरोना से लड़कर ठीक होने के बाद एक समस्या जो अधिकांश लोगों में देखने को मिल रही है वो है बालों का बहुत तेजी से गिरना. खासतौर पर महिलाएं बाल झड़ने की इस समस्या से बहुत ज्यादा चिंतित हैं. कुछ जगहों पर ऐसा भी पाया गया है कि कोविड वैक्सीन लगवाने के कुछ हफ़्तों बाद अचानक से बाल ज्यादा गिरने लग रहे हैं. अगर आप इस समस्या से जूझ रहें हैं तो नीचे बताए गए घरेलू उपाय अपनाएं साथ ही अगर कुछ दिनों में आराम ना मिले तो डॉक्टर से संपर्क करें.

Home remedies for Hairfall

बालों को झड़ने से रोकने के घरेलू उपाय (Home remedies to control Hair fall in Hindi)

  • बालों के झड़ने की समस्या से निजात पाने के लिए संतुलित और पौष्टिक आहार ले साथ ही खाने में हरी सब्जी और फलों का उपयोग बढ़ा दें.
  • ऐसे समय में शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन मिलना ज़रूरी होता है इसलिए अपनी डाइट में दालों का सेवन बढ़ा दें.
  • आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार आंवला का सेवन बालों के लिए बहुत ही उपयोगी होता है. इसके लिए आप दिन में एक बार आंवले का जूस पिएं और अगर आपको जूस का स्वाद अच्छा नहीं लग रहा है तो आप आंवले के मुरब्बे का सेवन कर सकते हैं.

शुगर लेवल अनियंत्रित होना (Uncontrolled Diabetes)

कोरोना के समय सबसे ज्यादा दिक्कत उन लोगों को हुई जो पहले से डायबिटीज के मरीज थे क्योंकि उनका शुगर लेवल वायरस के संक्रमण के प्रभाव के कारण अनियंत्रित होने लगा. शुगर लेवल अनियंत्रित होने की यह समस्या कोविड से रिकवर होने के बाद भी कई लोगों में देखी गई. आइए जानते हैं डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए आप क्या करें.

Diabetes

डायबिटीज को नियंत्रित करने के घरेलू उपाय (Home remedies for Uncontrolled Diabetes in Hindi)

अगर आप कोविड से रिकवर हो चुके हैं और अभी भी आपका शुगर लेवल अनियंत्रित रहता है तो सबसे ज़रूरी है कि आप अपने खानपान और जीवनशैली में सुधार लाएं. रोजाना सुबह शाम नियमित रूप से व्यायाम करें और भरपूर नींद लें. इन उपायों के अलावा नियमित रूप से अपने डॉक्टर के संपर्क में रहें और उनकी सलाह के अनुसार दवाएं लेते रहें.

तनाव या डिप्रेशन की समस्या :

कोविड का सबसे बुरा असर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है. कोविड से रिकवर हुए ऐसे कई लोगों में यह देखने को मिला है कि वे स्ट्रेस और डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों से घिर चुके हैं. ऐसी अवस्था में आपको समय समय पर जाकर मानसिक रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए और उनके अनुसार अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने चाहिए. आइए कुछ आयुर्वेदिक उपायों के बारे में भी जानते हैं :

depression

तनाव या डिप्रेशन से छुटकारा पाने के घरेलू उपाय :

आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार, अश्वगंधा का सेवन मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) को दूर करने में मदद करता है. इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अनुसार अश्वगंधा का सीमित मात्रा में सेवन करें.

नियमित रूप से योग और ध्यान करने से भी स्ट्रेस और डिप्रेशन जैसे मानसिक रोगों को कम किया जा सकता है. रोजाना सुबह और शाम को कम से अकम आधे घंटे ध्यान और योग करें.

ठीक से नींद ना आने की समस्या :

कोविड के साइड इफ़ेक्ट के रूप में कई लोगों को नींद से जुड़ी समस्याएं भी हो रही हैं. पहले की तुलना में कोविड से रिकवर होने के बाद अब उन्हें भरपूर नींद लेने में कठिनाई हो रही है. अगर आप भी नींद से जुड़ी समस्या या अनिद्रा से परेशान हैं तो इन उपायों को आजमाएं.

symptoms of insomnia

अनिद्रा या नींद से जुड़ी समस्या दूर करने के घरेलू उपाय :

  • अगर रात में आपको ठीक से नींद नहीं आ रही है तो इसके लिए रात में सोने से पहले तिल के तेल से शरीर की मालिश करें.
  • रात में सोने से पहले नाक में अणु तेल (आयुर्वेदिक तेल) की कुछ बूंदें डालने से भी अच्छी नींद आती है.

अक्सर मौसमी बीमारियाँ होना :

यह सच है कि मजबूत इम्यूनिटी के कारण ही हम इस वायरस से लड़ने में कामयाब हुए लेकिन फिर भी कोरोना वायरस से संक्रमित होने पर शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है. कमजोर इम्यूनिटी होने पर ऐसा देखा गया है कि कोविड से रिकवर होने के बाद भी लोग बार-बार समी बीमारियों जैसे कि सर्दी-जुकाम, वायरल आदि की चपेट में आ रहे हैं. आइए जानते हैं कि मौसमी बीमारियों से निपटने के लिए क्या करें :

cold and cough

मौसमी बीमारियों से निपटने के घरेलू उपाय :

  • मौसमी बीमारियों से निपटने के लिए यह ज़रूरी है कि शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाया जाए. इसके लिए आप रोजाना सुबह एक चम्मच च्वयनप्राश का सेवन करें. यह इम्यूनिटी बढ़ाने में बहुत कारगर है.
  • अपनी डाइट में फलों और हरी सब्जियों का सेवन बढ़ा दें एवं नियमित रूप से व्यायाम करें.
  • ड्राई फ्रूट्स जैसे कि बादाम, अखरोट, पिस्ता आदि का सीमित मात्रा में सेवन करने से भी इम्यूनिटी बढ़ती है और मौसमी बीमारियों से छुटकारा मिलता है.
आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, स्वामी रामदेव जी के साथी और पतंजलि योगपीठ और दिव्य योग मंदिर (ट्रस्ट) के एक संस्थापक स्तंभ है। उन्होंने प्राचीन संतों की आध्यात्मिक परंपरा को ऊँचा किया है। आचार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

कफ दोष क्या है : असंतुलित कफ से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय

कफ दोष क्या है : असंतुलित कफ से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय

आयुर्वेद में बताया गया है कि हर एक इंसान की एक ख़ास प्रकृति होती है। अधिकांश लोगों को अपनी प्रकृति के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं होता है जबकि आप अपनी आदतों और स्वभाव के आधार पर बहुत आसानी से अपनी प्रकृति जान सकते हैं। जैसे कि किसी काम को शुरु करने में आप बहुत देरी करते हैं या आप चाल बहुत धीमी और गंभीर है तो यह दर्शाता है कि आप कफ प्रकृति के हैं। इस लेख में हम आपको कफ प्रकृति के लक्षणों, इससे जुड़े रोगों और उपायों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

Kapha Dosha

कफ दोष क्या है?

कफ दोष, ‘पृथ्वी’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। ‘पृथ्वी’ के कारण कफ दोष में स्थिरता और भारीपन और ‘जल’ के कारण तैलीय और चिकनाई वाले गुण होते हैं। यह दोष शरीर की मजबूती और इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने में सहायक है। कफ दोष का शरीर में मुख्य स्थान पेट और छाती हैं।

कफ शरीर को पोषण देने के अलावा बाकी दोनों दोषों (वात और पित्त) को भी नियंत्रित करता है। इसकी कमी होने पर ये दोनों दोष अपने आप ही बढ़ जाते हैं। इसलिए शरीर में कफ का संतुलित अवस्था में रहना बहुत ज़रूरी है।

कफ दोष के प्रकार :

शरीर में अलग स्थानों और कार्यों के आधार पर आयुर्वेद में कफ को पांच भागों में बांटा गया है।

  1. क्लेदक
  2. अवलम्बक
  3. बोधक
  4. तर्पक
  5. श्लेषक

आयुर्वेद में कफ दोष से होने वाले रोगों की संख्या करीब 20 मानी गयी है।

कफ के गुण :

कफ भारी, ठंडा, चिकना, मीठा, स्थिर और चिपचिपा होता है। यही इसके स्वाभाविक गुण हैं। इसके अलावा कफ धीमा और गीला होता है। रंगों की बात करें तो कफ का रंग सफ़ेद और स्वाद मीठा होता है। किसी भी दोष में जो गुण पाए जाते हैं उनका शरीर पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है और उसी से प्रकृति का पता चलता है।

कफ प्रकृति की विशेषताएं :

कफ दोष के गुणों के आधार पर ही कफ प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं। हर एक दोष का अपना एक विशिष्ट प्रभाव है। जैसे कि भारीपन के कारण ही कफ प्रकृति वाले लोगों की चाल धीमी होती है। शीतलता गुण के कारण उन्हें भूख, प्यास, गर्मी कम लगती है और पसीना कम निकलता है। कोमलता और चिकनाई के कारण पित्त प्रकृति वाले लोग गोरे और सुन्दर होते हैं। किसी भी काम को शुरू करने में देरी या आलस आना, स्थिरता वाले गुण के कारण होता है।

कफ प्रकृति वाले लोगों का शरीर मांसल और सुडौल होता है। इसके अलावा वीर्य की अधिकता भी कफ प्रकृति वाले लोगों का लक्षण है।

कफ बढ़ने के कारण :

मार्च-अप्रैल के महीने में, सुबह के समय, खाना खाने के बाद और छोटे बच्चों में कफ स्वाभाविक रुप से ही बढ़ा हुआ रहता है। इसलिए इन समयों में विशेष ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा खानपान, आदतों और स्वभाव की वजह से भी कफ असंतुलित हो जाता है। आइये जानते हैं कि शरीर में कफ दोष बढ़ने के मुख्य कारण क्या हैं।

  • मीठे, खट्टे और चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन
  • मांस-मछली का अधिक सेवन
  • तिल से बनी चीजें, गन्ना, दूध, नमक का अधिक सेवन
  • फ्रिज का ठंडा पानी पीना
  • आलसी स्वभाव और रोजाना व्यायाम ना करना
  • दूध-दही, घी, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल, कद्दू आदि का सेवन

कफ बढ़ जाने के लक्षण :

शरीर में कफ दोष बढ़ जाने पर कुछ ख़ास तरह के लक्षण नजर आने लगते हैं। आइये कुछ प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।

  • हमेशा सुस्ती रहना, ज्यादा नींद आना
  • शरीर में भारीपन
  • मल-मूत्र और पसीने में चिपचिपापन
  • शरीर में गीलापन महसूस होना
  • शरीर में लेप लगा हुआ महसूस होना
  • आंखों और नाक से अधिक गंदगी का स्राव
  • अंगों में ढीलापन
  • सांस की तकलीफ और खांसी
  • डिप्रेशन

कफ को संतुलित करने के उपाय :

इसके लिए सबसे पहले उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से शरीर में कफ बढ़ गया है। कफ को संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में ज़रूरी बदलाव करने होंगे। आइये सबसे पहले खानपान से जुड़े बदलावों के बारे में बात करते हैं।

कफ को संतुलित करने के लिए क्या खाएं :

कफ प्रकृति वाले लोगों को इन चीजों का सेवन करना ज्यादा फायदेमंद रहता है।

  • बाजरा, मक्का, गेंहूं, किनोवा ब्राउन राइस ,राई आदि अनाजों का सेवन करें।
  • सब्जियों में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली, हरी सेम, शिमला मिर्च, मटर, आलू, मूली, चुकंदर आदि का सेवन करें।
  • जैतून के तेल और सरसों के तेल का उपयोग करें।
  • छाछ और पनीर का सेवन करें।
  • तीखे और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
  • सभी तरह की दालों को अच्छे से पकाकर खाएं।
  • नमक का सेवन कम करें।
  • पुराने शहद का उचित मात्रा में सेवन करें।

कफ प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :

  • मैदे और इससे बनी चीजों का सेवन ना करें।
  • एवोकैड़ो, खीरा, टमाटर, शकरकंद के सेवन से परहेज करें।
  • केला, खजूर, अंजीर, आम, तरबूज के सेवन से परहेज करें।

जीवनशैली में बदलाव :

खानपान में बदलाव के साथ साथ कफ को कम करने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना भी जरूरी है। आइये जाने हैं बढे हुए कफ दोष को कम करने के लिए क्या करना चाहिए।

  • पाउडर से सूखी मालिश या तेल से शरीर की मसाज करें
  • गुनगुने पानी से नहायें।
  • रोजाना कुछ देर धूप में टहलें।
  • रोजाना व्यायाम करें जैसे कि : दौड़ना, ऊँची व लम्बी कूद, कुश्ती, तेजी से टहलना, तैरना आदि।
  • गर्म कपड़ों का अधिक प्रयोग करें।
  • बहुत अधिक चिंता ना करें।
  • देर रात तक जागें
  • रोजाना की दिनचर्या में बदलाव लायें
  • ज्यादा आराम पसंद जिंदगी ना बिताएं बल्कि कुछ ना कुछ करते रहें।

कफ बहुत ज्यादा बढ़ जाने पर उल्टी करवाना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। इसके लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा तीखे और गर्म प्रभाव वाले औषधियों की मदद से उल्टी कराई जाती है। असल में हमारे शरीर में कफ आमाशय और छाती में सबसे ज्यादा होता है, उल्टी (वमन क्रिया) करवाने से इन अंगों से कफ पूरी तरह बाहर निकल जाता है।

कफ की कमी के लक्षण :

कफ बढ़ जाने से तो समस्याएं होना आम बात है लेकिन क्या आपको पता है कि कफ की कमी से भी कुछ समस्याएं हो सकती हैं। जी हाँ, यदि शरीर में कफ की मात्रा कम हो जाए तो निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।

  • शरीर में रूखापन :
  • शरीर में अंदर से जलन महसूस होना
  • फेफड़ों, हड्डियों, ह्रदय और सिर में खालीपन महसूस होना
  • बहुत प्यास लगना
  • कमजोरी महसूस होना और नींद की कमी

कफ की कमी का उपचार :

कफ की कमी होने पर उन चीजों का सेवन करें जो कफ को बढ़ाते हो जैसे कि दूध, चावल। गर्मियों के मौसम में दिन में सोने से भी कफ बढ़ता है इसलिए कफ की कमी होने पर आप दिन में कुछ देर ज़रूर सोएं।

साम और निराम कफ :

पाचक अग्नि कमजोर होने पर हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पच नहीं पाता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है। यह दोषों के साथ मिलकर कई रोग उत्पन्न करता है।

  • जब कफ ‘आम’ से मिला होता है तो यह अस्वच्छ, तार की तरह आपस में मुड़ा हुआ गले में चिपकने वाला गाढ़ा और बदबूदार होता है। ऐसा कफ डकार को रोकता है और भूख को कम करता है।
  • जबकि निराम कफ झाग वाला जमा हुआ, हल्का और दुर्गंध रहित होता है। निराम कफ गले में नहीं चिपकता है और मुंह को साफ़ रखता है।

अगर आप कफ प्रकृति के हैं और अक्सर कफ के असंतुलित होने से परेशान रहते हैं तो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करें। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, स्वामी रामदेव जी के साथी और पतंजलि योगपीठ और दिव्य योग मंदिर (ट्रस्ट) के एक संस्थापक स्तंभ है। उन्होंने प्राचीन संतों की आध्यात्मिक परंपरा को ऊँचा किया है। आचार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

पित्त दोष क्या है : असंतुलित पित्त से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय

पित्त दोष क्या है : असंतुलित पित्त से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय

क्या आपके शरीर से भी बहुत तेज दुर्गंध आती है? या आप बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं तो जान लें कि ये सारे लक्षण पित्त प्रकृति के हैं। ऐसे लोग जिनमें पित्त दोष ज्यादा पाया जाता है वे पित्त प्रकृति वाले माने जाते हैं। इस लेख में हम आपको पित्त प्रकृति के गुण, लक्षण और इसे संतुलित करने के उपायों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

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पित्त दोष क्या है?

पित्त दोष ‘अग्नि’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। यह हमारे शरीर में बनने वाले हार्मोन और एंजाइम को नियंत्रित करता है। शरीर की गर्मी जैसे कि शरीर का तापमान, पाचक अग्नि जैसी चीजें पित्त द्वारा ही नियंत्रित होती हैं। पित्त का संतुलित अवस्था में होना अच्छी सेहत के लिए बहुत ज़रूरी है। शरीर में पेट और छोटी आंत में पित्त प्रमुखता से पाया जाता है।

ऐसे लोग पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे कि कब्ज़, अपच, एसिडिटी आदि से पीड़ित रहते हैं। पित्त दोष के असंतुलित होते ही पाचक अग्नि कमजोर पड़ने लगती है और खाया हुआ भोजन ठीक से पच नहीं  पाता है। पित्त दोष के कारण उत्साह में कमी होने लगती है साथ ही ह्रदय और फेफड़ों में कफ इकठ्ठा होने लगता है। इस लेख में हम आपको पित्त दोष के लक्षण, प्रकृति, गुण और इसे संतुलित रखने के उपाय बता रहे हैं।

पित्त के प्रकार :

शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर पित्त को पांच भांगों में बांटा गया है.

  • पाचक पित्त
  • रज्जक पित्त
  • साधक पित्त
  • आलोचक पित्त
  • भ्राजक पित्त

केवल पित्त के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या 40 मानी गई है।

पित्त के गुण :

चिकनाई, गर्मी, तरल, अम्ल और कड़वा पित्त के लक्षण हैं। पित्त पाचन और गर्मी पैदा करने वाला व कच्चे मांस जैसी बदबू वाला होता है। निराम दशा में पित्त रस कडवे स्वाद वाला पीले रंग का होता है। जबकि साम दशा में यह स्वाद में खट्टा और रंग में नीला होता है। किसी भी दोष में जो गुण पाए जाते हैं उनका शरीर पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है और उसी से प्रकृति के लक्षणों और विशेषताओं का पता चलता है.

पित्त प्रकृति की विशेषताएं :

पित्त प्रकृति वाले लोगों में कुछ ख़ास तरह की विशेषताओं पाई जाती हैं जिनके आधार पर आसानी से उन्हें पहचाना जा सकता है। अगर शारीरिक विशेषताओं की बात करें तो मध्यम कद का शरीर, मांसपेशियों व हड्डियों में कोमलता, त्वचा का साफ़ रंग और उस पर तिल, मस्से होना पित्त प्रकृति के लक्षण हैं। इसके अलावा बालों का सफ़ेद होना, शरीर के अंगों जैसे कि नाख़ून, आंखें, पैर के तलवे हथेलियों का काला होना भी पित्त प्रकृति की विशेषताएं हैं।

पित्त प्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में भी कई विशेषताए होती हैं। बहुत जल्दी गुस्सा हो जाना, याददाश्त कमजोर होना, कठिनाइयों से मुकाबला ना कर पाना व सेक्स की इच्छा में कमी इनके प्रमुख लक्षण हैं। ऐसे लोग बहुत नकारात्मक होते हैं और इनमें मानसिक रोग होने की संभावना ज्यादा रहती है।

पित्त बढ़ने के कारण:

जाड़ों के शुरूआती मौसम में और युवावस्था में पित्त के बढ़ने की संभावना ज्यादा रहती है। अगर आप पित्त प्रकृति के हैं तो आपके लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि आखिर किन वजहों से पित्त बढ़ रहा है। आइये कुछ प्रमुख कारणों पर एक नजर डालते हैं।

  • चटपटे, नमकीन, मसालेदार और तीखे खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन
  • ज्यादा मेहनत करना, हमेशा मानसिक तनाव और गुस्से में रहना
  • अधिक मात्रा में शराब का सेवन
  • सही समय पर खाना ना खाने से या बिना भूख के ही भोजन करना
  • ज्यादा सेक्स करना
  • तिल का तेल,सरसों, दही, छाछ खट्टा सिरका आदि का अधिक सेवन
  • गोह, मछली, भेड़ व बकरी के मांस का अधिक सेवन

ऊपर बताए गए इन सभी कारणों की वजह से पित्त दोष बढ़ जाता है। पित्त प्रकृति वाले युवाओं को खासतौर पर अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए और इन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

पित्त बढ़ जाने के लक्षण :

जब किसी व्यक्ति के शरीर में पित्त दोष बढ़ जाता है तो कई तरह के शारीरिक और मानसिक लक्षण नजर आने लगते हैं। पित्त दोष बढ़ने के कुछ प्रमुख लक्षण निम्न हैं।

  • बहुत अधिक थकावट, नींद में कमी
  • शरीर में तेज जलन, गर्मी लगना और ज्यादा पसीना आना
  • त्वचा का रंग पहले की तुलना में गाढ़ा हो जाना
  • अंगों से दुर्गंध आना
  • मुंह, गला आदि का पकना
  • ज्यादा गुस्सा आना
  • बेहोशी और चक्कर आना
  • मुंह का कड़वा और खट्टा स्वाद
  • ठंडी चीजें ज्यादा खाने का मन करना
  • त्वचा, मल-मूत्र, नाखूनों और आंखों का रंग पीला पड़ना

अगर आपमें ऊपर बताए गये लक्षणों में से दो या तीन लक्षण भी नजर आते हैं तो इसका मतलब है कि पित्त दोष बढ़ गया है। ऐसे में नजदीकी चिकित्सक के पास जाएं और अपना इलाज करवाएं।

पित्त को शांत करने के उपाय :

बढे हुए पित्त को संतुलित करने के लिए सबसे पहले तो उन कारणों से दूर रहिये जिनकी वजह से पित्त दोष बढ़ा हुआ है। खानपान और जीवनशैली में बदलाव के अलावा कुछ चिकित्सकीय प्रक्रियाओं की मदद से भी पित्त को दूर किया जाता है।

विरेचन :

बढे हुए पित्त को शांत करने के लिए विरेचन (पेट साफ़ करने वाली औषधि) सबसे अच्छा उपाय है। वास्तव में शुरुआत में पित्त आमाशय और ग्रहणी (Duodenum) में ही इकठ्ठा रहता है। ये पेट साफ़ करने वाली औषधियां इन अंगों में पहुंचकर वहां जमा पित्त को पूरी तरह से बाहर निकाल देती हैं।

पित्त को संतुलित करने के लिए क्या खाएं :

अपनी डाइट में बदलाव लाकर आसानी से बढे हुए पित्त को शांत किया जा सकता है. आइये जानते हैं कि पित्त के प्रकोप से बचने के लिए किन चीजों का सेवन अधिक करना चाहिए.

  • घी का सेवन सबसे ज्यादा ज़रुरी है।
  • गोभी, खीरा, गाजर, आलू, शिमला मिर्च और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें।
  • सभी तरह की दालों का सेवन करें।
  • एलोवेरा जूस, अंकुरित अनाज, सलाद और दलिया का सेवन करें।

और पढ़े: पित्त मे चीकू के फायदे

पित्त प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :

खाने-पीने की कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनके सेवन से पित्त दोष और बढ़ता है। इसलिए पित्त प्रकृति वाले लोगों को इन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

  • मूली, काली मिर्च और कच्चे टमाटर खाने से परहेज करें।
  • तिल के तेल, सरसों के तेल से परहेज करें।
  • काजू, मूंगफली, पिस्ता, अखरोट और बिना छिले हुए बादाम से परहेज करें।
  • संतरे के जूस, टमाटर के जूस, कॉफ़ी और शराब से परहेज करें।

जीवनशैली में बदलाव :

सिर्फ खानपान ही नहीं बल्कि पित्त दोष को कम करने के लिए जीवनशैली में भी कुछ बदलाव लाने ज़रूरी हैं। जैसे कि

  • ठंडे तेलों से शरीर की मसाज करें।
  • तैराकी करें।
  • रोजाना कुछ देर छायें में टहलें, धूप में टहलने से बचें।
  • ठंडे पानी से नियमित स्नान करें।

पित्त की कमी के लक्षण और उपचार :

पित्त में बढ़ोतरी होने पर समस्याएँ होना आम बात है लेकिन क्या आपको पता है कि पित्त की कमी से भी कई शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं? शरीर में पित्त की कमी होने से शरीर के तापमान में कमी, मुंह की चमक में कमी और ठंड लगने जैसी समस्याएं होती हैं। कमी होने पर पित्त के जो स्वाभाविक गुण हैं वे भी अपना काम ठीक से नहीं करते हैं। ऐसी अवस्था में पित्त बढ़ाने वाले आहारों का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा ऐसे खाद्य पदार्थों और औषधियों का सेवन करना चाहिए जिनमें अग्नि तत्व अधिक हो।

साम और निराम पित्त :

हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पच नहीं पता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है।

जब पित्त, आम दोष से मिल जाता है तो उसे साम पित्त कहते हैं। साम पित्त दुर्गन्धयुक्त खट्टा, स्थिर, भारी और हरे या काले रंग का होता है। साम पित्त होने पर खट्टी डकारें आती हैं और इससे छाती व गले में जलन होती है। इससे आराम पाने के लिए कड़वे स्वाद वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें।

जब पित्त, आम दोष से नहीं मिलता है तो उसे निराम पित्त कहते हैं। निराम पित्त बहुत ही गर्म, तीखा, कडवे स्वाद वाला, लाल पीले रंग का होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है। इससे आराम पाने के लिए मीठे और कसैले पदार्थों का सेवन करें।

पित्त प्रकृति के लोगों को पित्त को बढ़ने से रोकने के लिए ऊपर बताए गए नियमों का पालन करना चाहिए। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।

आचार्य श्री बालकृष्ण


वात दोष के लक्षण एवं उपाय

वात दोष क्या है : असंतुलित वात से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय

आपने अपने आस पास ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो ज़रूरत से ज्यादा बोलते हैं, हमेशा वे बहुत तेजी में रहते हैं या फिर बहुत जल्दी कोई निर्णय ले लेते हैं। इसी तरह कुछ लोग बैठे हुए भी पैर हिलाते रहते हैं। दरअसल ये सारे लक्षण वात प्रकृति वाले लोगों के हैं। अधिकांश वात प्रकृति वाले लोग आपको ऐसे ही करते नजर आयेंगे। आयुर्वेद में गुणों और लक्षणों के आधार पर प्रकृति का निर्धारण किया गया है। आप अपनी आदतों या लक्षणों को देखकर अपनी प्रकृति का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इस लेख में हम आपको वात प्रकृति के गुण, लक्षण और इसे संतुलित रखने के उपाय के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

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Contents

वात दोष क्या है

वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात या वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया वात के कारण ही संभव है। चरक संहिता में वायु को ही पाचक अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का प्रेरक और उत्साह का केंद्र माना गया है। वात का मुख्य स्थान पेट और आंत में है।

वात में योगवाहिता या जोड़ने का एक ख़ास गुण होता है। इसका मतलब है कि यह अन्य दोषों के साथ मिलकर उनके गुणों को भी धारण कर लेता है। जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो इसमें दाह, गर्मी वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता है तो इसमें शीतलता और गीलेपन जैसे गुण आ जाते हैं।

वात के प्रकार

शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर वात को पांच भांगों में बांटा गया है।

  1. प्राण
  2. उदान
  3. समान
  4. व्यान
  5. अपान

आयुर्वेद के अनुसार सिर्फ वात के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या ही 80 के करीब है।

वात के गुण

रूखापन, शीतलता, लघु, सूक्ष्म, चंचलता, चिपचिपाहट से रहित और खुरदुरापन वात के गुण हैं। रूखापन वात का स्वाभाविक गुण है। जब वात संतुलित अवस्था में रहता है तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते हैं। लेकिन वात के बढ़ने या असंतुलित होते ही आपको इन गुणों के लक्षण नजर आने लगेंगे।

वात प्रकृति की विशेषताएं

आयुर्वेद की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य और रोगों के इलाज में उसकी प्रकृति का विशेष योगदान रहता है। इसी प्रकृति के आधार पर ही रोगी को उसके अनुकूल खानपान और औषधि की सलाह दी जाती है।

वात दोष के गुणों के आधार पर ही वात प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं. जैस कि रूखापन गुण होने के कारण भारी आवाज, नींद में कमी, दुबलापन और त्वचा में रूखापन जैसे लक्षण होते हैं. शीतलता गुण के कारण ठंडी चीजों को सहन ना कर पाना, जाड़ों में होने वाले रोगों की चपेट में जल्दी आना, शरीर कांपना जैसे लक्षण होते हैं. शरीर में हल्कापन, तेज चलने में लड़खड़ाने जैसे लक्षण लघुता गुण के कारण होते हैं.

इसी तरह सिर के बालों, नाखूनों, दांत, मुंह और हाथों पैरों में रूखापन भी वात प्रकृति वाले लोगों के लक्षण हैं. स्वभाव की बात की जाए तो वात प्रकृति वाले लोग बहुत जल्दी कोई निर्णय लेते हैं. बहुत जल्दी गुस्सा होना या चिढ़ जाना और बातों को जल्दी समझकर फिर भूल जाना भी पित्त प्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में होता है.

वात बढ़ने के कारण

जब आयुर्वेदिक चिकित्सक आपको बताते हैं कि आपका वात बढ़ा हुआ है तो आप समझ नहीं पाते कि आखिर ऐसा क्यों हुआ है? दरअसल हमारे खानपान, स्वभाव और आदतों की वजह से वात बिगड़ जाता है। वात के बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  • मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना
  • खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना और अधिक मात्रा में खाना
  • रात को देर तक जागना, तेज बोलना
  • अपनी क्षमता से ज्यादा मेहनत करना
  • सफ़र के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगना
  • तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन
  • बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना
  • हमेशा चिंता में या मानसिक परेशानी में रहना
  • ज्यादा सेक्स करना
  • ज्यादा ठंडी चीजें खाना
  • व्रत रखना

ऊपर बताए गये इन सभी कारणों की वजह से वात दोष बढ़ जाता है। बरसात के मौसम में और बूढ़े लोगों में तो इन कारणों के बिना भी वात बढ़ जाता है।

वात बढ़ जाने के लक्षण

वात बढ़ जाने पर शरीर में तमाम तरह के लक्षण नजर आते हैं। आइये उनमें से कुछ प्रमुख लक्षणों पर एक नजर डालते हैं।

  • अंगों में रूखापन और जकड़न
  • सुई के चुभने जैसा दर्द
  • हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन
  • हड्डियों का खिसकना और टूटना
  • अंगों में कमजोरी महसूस होना एवं अंगों में कंपकपी
  • अंगों का ठंडा और सुन्न होना
  • कब्ज़
  • नाख़ून, दांतों और त्वचा का फीका पड़ना
  • मुंह का स्वाद कडवा होना

अगर आपमें ऊपर बताए गये लक्षणों में से 2-3 या उससे ज्यादा लक्षण नजर आते हैं तो यह दर्शाता है कि आपके शरीर में वात दोष बढ़ गया है। ऐसे में नजदीकी चिकित्सक के पास जाएं और अपना इलाज करवाएं।

वात को संतुलित करने के उपाय

वात को शांत या संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे। आपको उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ रहा है। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता है. खानपान में किये गए बदलाव जल्दी असर दिखाते हैं।

वात को संतुलित करने के लिए क्या खाएं

  • घी, तेल और फैट वाली चीजों का सेवन करें।
  • गेंहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ से बनी चीजों का सेवन करें।
  • नमकीन छाछ, मक्खन, ताजा पनीर, उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।
  • घी में  तले हुए सूखे मेवे खाएं या फिर बादाम,कद्दू के बीज, तिल के बीज, सूरजमुखी के बीजों को पानी में भिगोकर खाएं।
  • खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद आदि सब्जियों का नियमित सेवन करें।
  • मूंग दाल, राजमा, सोया दूध का सेवन करें।

वात प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए

अगर आप वात प्रकृति के हैं तो निम्नलिखित चीजों के सेवन से परहेज करें।

  • साबुत अनाज जैसे कि बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि के सेवन से परहेज करें।
  • किसी भी तरह की गोभी जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि से परहेज करें।
  • जाड़ों के दिनों में ठंडे पेय पदार्थों जैसे कि कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि ना पियें।
  • नाशपाती, कच्चे केले आदि का सेवन ना करें।

जीवनशैली में बदलाव

जिन लोगों का वात अक्सर असंतुलित रहता है उन्हें अपने जीवनशैली में ये बदलाव लाने चाहिए।

  • एक निश्चित दिनचर्या बनाएं और उसका पालन करें।
  • रोजाना कुछ देर धूप में टहलें और आराम भी करें।
  • किसी शांत जगह पर जाकर रोजाना ध्यान करें।
  • गर्म पानी से और वात को कम करने वाली औषधियों के काढ़े से नहायें। औषधियों से तैयार काढ़े को टब में डालें और उसमें कुछ देर तक बैठे रहें।
  • गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें, मसाज के लिए तिल का तेल, बादाम का तेल और जैतून के तेल का इस्तेमाल करें।
  • मजबूती प्रदान करने वाले व्यायामों को रोजाना की दिनचर्या में ज़रूर शामिल करें।
  • वात में कमी के लक्षण और उपचार

    वात में बढ़ोतरी होने की ही तरह वात में कमी होना भी एक समस्या है और इसकी वजह से भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। आइये पहले वात में कमी के प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।

    वात में कमी के लक्षण :

    • बोलने में दिक्कत
    • अंगों में ढीलापन
    • सोचने समझने की क्षमता और याददाश्त में कमी
    • वात के स्वाभाविक कार्यों में कमी
    • पाचन में कमजोरी
    • जी मिचलाना

    उपचार :

    वात की कमी होने पर वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। कडवे, तीखे, हल्के एवं ठंडे पेय पदार्थों का सेवन करें। इनके सेवन से वात जल्दी बढ़ता है। इसके अलावा वात बढ़ने पर जिन चीजों के सेवन की मनाही होती है उन्हें खाने से वात की कमी को दूर किया जा सकता है।

    साम और निराम वात

    हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पाच नहीं पता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है।

    जब वात शरीर में आम रस के साथ मिल जाता है तो उसे साम वात कहते हैं। साम वात होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।

    • मल-मूत्र और गैस बाहर निकालने में दिक्कत
    • पाचन शक्ति में कमी
    • हमेशा सुस्ती या आलस महसूस होना
    • आंत में गुडगुडाहट की आवाज
    • कमर दर्द

    यदि साम वात का इलाज ठीक समय पर नहीं किया गया तो आगे चलकर यह पूरे शरीर में फ़ैल जाता है और कई बीमारियों होने लगती हैं।

    जब वात, आम रस युक्त नहीं होता है तो यह निराम वात कहलाता है। निराम वात के प्रमुख लक्षण त्वचा में रूखापन, मुंह जीभ का सूखना आदि है. इसके लिए तैलीय खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें।

    अगर आप वात प्रकृति के हैं और अक्सर वात के असंतुलित होने से परेशान रहते हैं तो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करें। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।

    -आचार्य श्री बालकृष्ण

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