कफ दोष क्या है : असंतुलित कफ से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय
आयुर्वेद में बताया गया है कि हर एक इंसान की एक ख़ास प्रकृति होती है। अधिकांश लोगों को अपनी प्रकृति के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं होता है जबकि आप अपनी आदतों और स्वभाव के आधार पर बहुत आसानी से अपनी प्रकृति जान सकते हैं। जैसे कि किसी काम को शुरु करने में आप बहुत देरी करते हैं या आप चाल बहुत धीमी और गंभीर है तो यह दर्शाता है कि आप कफ प्रकृति के हैं। इस लेख में हम आपको कफ प्रकृति के लक्षणों, इससे जुड़े रोगों और उपायों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
Contents
- 1 कफ दोष क्या है?
- 2 कफ दोष के प्रकार :
- 3 कफ के गुण :
- 4 कफ प्रकृति की विशेषताएं :
- 5 कफ बढ़ने के कारण :
- 6 कफ बढ़ जाने के लक्षण :
- 7 कफ को संतुलित करने के उपाय :
- 8 कफ को संतुलित करने के लिए क्या खाएं :
- 9 कफ प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :
- 10 जीवनशैली में बदलाव :
- 11 कफ की कमी के लक्षण :
- 12 कफ की कमी का उपचार :
- 13 साम और निराम कफ :
कफ दोष क्या है?
कफ दोष, ‘पृथ्वी’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। ‘पृथ्वी’ के कारण कफ दोष में स्थिरता और भारीपन और ‘जल’ के कारण तैलीय और चिकनाई वाले गुण होते हैं। यह दोष शरीर की मजबूती और इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने में सहायक है। कफ दोष का शरीर में मुख्य स्थान पेट और छाती हैं।
कफ शरीर को पोषण देने के अलावा बाकी दोनों दोषों (वात और पित्त) को भी नियंत्रित करता है। इसकी कमी होने पर ये दोनों दोष अपने आप ही बढ़ जाते हैं। इसलिए शरीर में कफ का संतुलित अवस्था में रहना बहुत ज़रूरी है।
कफ दोष के प्रकार :
शरीर में अलग स्थानों और कार्यों के आधार पर आयुर्वेद में कफ को पांच भागों में बांटा गया है।
- क्लेदक
- अवलम्बक
- बोधक
- तर्पक
- श्लेषक
आयुर्वेद में कफ दोष से होने वाले रोगों की संख्या करीब 20 मानी गयी है।
कफ के गुण :
कफ भारी, ठंडा, चिकना, मीठा, स्थिर और चिपचिपा होता है। यही इसके स्वाभाविक गुण हैं। इसके अलावा कफ धीमा और गीला होता है। रंगों की बात करें तो कफ का रंग सफ़ेद और स्वाद मीठा होता है। किसी भी दोष में जो गुण पाए जाते हैं उनका शरीर पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है और उसी से प्रकृति का पता चलता है।
कफ प्रकृति की विशेषताएं :
कफ दोष के गुणों के आधार पर ही कफ प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं। हर एक दोष का अपना एक विशिष्ट प्रभाव है। जैसे कि भारीपन के कारण ही कफ प्रकृति वाले लोगों की चाल धीमी होती है। शीतलता गुण के कारण उन्हें भूख, प्यास, गर्मी कम लगती है और पसीना कम निकलता है। कोमलता और चिकनाई के कारण पित्त प्रकृति वाले लोग गोरे और सुन्दर होते हैं। किसी भी काम को शुरू करने में देरी या आलस आना, स्थिरता वाले गुण के कारण होता है।
कफ प्रकृति वाले लोगों का शरीर मांसल और सुडौल होता है। इसके अलावा वीर्य की अधिकता भी कफ प्रकृति वाले लोगों का लक्षण है।
कफ बढ़ने के कारण :
मार्च-अप्रैल के महीने में, सुबह के समय, खाना खाने के बाद और छोटे बच्चों में कफ स्वाभाविक रुप से ही बढ़ा हुआ रहता है। इसलिए इन समयों में विशेष ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा खानपान, आदतों और स्वभाव की वजह से भी कफ असंतुलित हो जाता है। आइये जानते हैं कि शरीर में कफ दोष बढ़ने के मुख्य कारण क्या हैं।
- मीठे, खट्टे और चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन
- मांस-मछली का अधिक सेवन
- तिल से बनी चीजें, गन्ना, दूध, नमक का अधिक सेवन
- फ्रिज का ठंडा पानी पीना
- आलसी स्वभाव और रोजाना व्यायाम ना करना
- दूध-दही, घी, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल, कद्दू आदि का सेवन
कफ बढ़ जाने के लक्षण :
शरीर में कफ दोष बढ़ जाने पर कुछ ख़ास तरह के लक्षण नजर आने लगते हैं। आइये कुछ प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।
- हमेशा सुस्ती रहना, ज्यादा नींद आना
- शरीर में भारीपन
- मल-मूत्र और पसीने में चिपचिपापन
- शरीर में गीलापन महसूस होना
- शरीर में लेप लगा हुआ महसूस होना
- आंखों और नाक से अधिक गंदगी का स्राव
- अंगों में ढीलापन
- सांस की तकलीफ और खांसी
- डिप्रेशन
कफ को संतुलित करने के उपाय :
इसके लिए सबसे पहले उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से शरीर में कफ बढ़ गया है। कफ को संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में ज़रूरी बदलाव करने होंगे। आइये सबसे पहले खानपान से जुड़े बदलावों के बारे में बात करते हैं।
कफ को संतुलित करने के लिए क्या खाएं :
कफ प्रकृति वाले लोगों को इन चीजों का सेवन करना ज्यादा फायदेमंद रहता है।
- बाजरा, मक्का, गेंहूं, किनोवा ब्राउन राइस ,राई आदि अनाजों का सेवन करें।
- सब्जियों में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली, हरी सेम, शिमला मिर्च, मटर, आलू, मूली, चुकंदर आदि का सेवन करें।
- जैतून के तेल और सरसों के तेल का उपयोग करें।
- छाछ और पनीर का सेवन करें।
- तीखे और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
- सभी तरह की दालों को अच्छे से पकाकर खाएं।
- नमक का सेवन कम करें।
- पुराने शहद का उचित मात्रा में सेवन करें।
कफ प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :
- मैदे और इससे बनी चीजों का सेवन ना करें।
- एवोकैड़ो, खीरा, टमाटर, शकरकंद के सेवन से परहेज करें।
- केला, खजूर, अंजीर, आम, तरबूज के सेवन से परहेज करें।
जीवनशैली में बदलाव :
खानपान में बदलाव के साथ साथ कफ को कम करने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना भी जरूरी है। आइये जाने हैं बढे हुए कफ दोष को कम करने के लिए क्या करना चाहिए।
- पाउडर से सूखी मालिश या तेल से शरीर की मसाज करें
- गुनगुने पानी से नहायें।
- रोजाना कुछ देर धूप में टहलें।
- रोजाना व्यायाम करें जैसे कि : दौड़ना, ऊँची व लम्बी कूद, कुश्ती, तेजी से टहलना, तैरना आदि।
- गर्म कपड़ों का अधिक प्रयोग करें।
- बहुत अधिक चिंता ना करें।
- देर रात तक जागें
- रोजाना की दिनचर्या में बदलाव लायें
- ज्यादा आराम पसंद जिंदगी ना बिताएं बल्कि कुछ ना कुछ करते रहें।
कफ बहुत ज्यादा बढ़ जाने पर उल्टी करवाना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। इसके लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा तीखे और गर्म प्रभाव वाले औषधियों की मदद से उल्टी कराई जाती है। असल में हमारे शरीर में कफ आमाशय और छाती में सबसे ज्यादा होता है, उल्टी (वमन क्रिया) करवाने से इन अंगों से कफ पूरी तरह बाहर निकल जाता है।
कफ की कमी के लक्षण :
कफ बढ़ जाने से तो समस्याएं होना आम बात है लेकिन क्या आपको पता है कि कफ की कमी से भी कुछ समस्याएं हो सकती हैं। जी हाँ, यदि शरीर में कफ की मात्रा कम हो जाए तो निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।
- शरीर में रूखापन :
- शरीर में अंदर से जलन महसूस होना
- फेफड़ों, हड्डियों, ह्रदय और सिर में खालीपन महसूस होना
- बहुत प्यास लगना
- कमजोरी महसूस होना और नींद की कमी
कफ की कमी का उपचार :
कफ की कमी होने पर उन चीजों का सेवन करें जो कफ को बढ़ाते हो जैसे कि दूध, चावल। गर्मियों के मौसम में दिन में सोने से भी कफ बढ़ता है इसलिए कफ की कमी होने पर आप दिन में कुछ देर ज़रूर सोएं।
साम और निराम कफ :
पाचक अग्नि कमजोर होने पर हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पच नहीं पाता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है। यह दोषों के साथ मिलकर कई रोग उत्पन्न करता है।
- जब कफ ‘आम’ से मिला होता है तो यह अस्वच्छ, तार की तरह आपस में मुड़ा हुआ गले में चिपकने वाला गाढ़ा और बदबूदार होता है। ऐसा कफ डकार को रोकता है और भूख को कम करता है।
- जबकि निराम कफ झाग वाला जमा हुआ, हल्का और दुर्गंध रहित होता है। निराम कफ गले में नहीं चिपकता है और मुंह को साफ़ रखता है।
अगर आप कफ प्रकृति के हैं और अक्सर कफ के असंतुलित होने से परेशान रहते हैं तो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करें। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।
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