Saturday, 9 August 2025

Rudrashtak : रुद्राष्टक

रुद्राष्टक 



नमामीशमीशान-निर्वाणरूपम्, विभु व्यापकं ब्रह्मवेद-स्वरूपम् ।

अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम्, चिदाकाशमाकशवासं भजे हम् ।१।

निराकारं ओंकारमूलं तुरीयम्, गिराज्ञान गोती-तमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकाल-कालं कृपालम्, गुणागार संसार-पारं नतोहम् ।२।

तुषाराद्रि-संकाश-गौर गम्भीरम्, मनोभूत-कोटि-प्रभासी शरीरम् ।

स्फुरन्मौलि-कल्लोलिनी चारूगंगा, लसद् भालबालेन्दु कण्ठे भुजडगा ।३।

चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालम्, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।

मृगाधीश-चर्माम्बरं मुण्डमालम्, प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ।४।

प्रचण्ड प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशम्, अखण्ड अजं भानुकोटि-प्रकाशम् ।

त्रयःशूल-निर्मूलनं शूलपातणिम्, भजेहं भवानीपति भावगम्यम् ।५।

कलातीत-कल्याण-कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानन्ददाता पुरारि : ।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी : १६।

न यावद्उमानाथ-पादारविन्दम्, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

व तावत्सुख शान्ति-सन्ताप-नाशम्, प्रसीद प्रभो ! सर्वभूताधिवासम् ।9।

न जानामि योग जपं नैव पूजाम्, नतोहं सदा सर्वदा शम्भु ! तुभ्यम् ।

जरा-जन्म-दुःखोघ-तातप्यमानम्, प्रभो ! पाहि आपन्नमामीश शम्भी ।८।

रुद्राष्टक मिंद प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये, ये पठन्ति परा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ।।


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Rudrashtak : रुद्राष्टक

रुद्राष्टक  नमामीशमीशान-निर्वाणरूपम्, विभु व्यापकं ब्रह्मवेद-स्वरूपम् । अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम्, चिदाकाशमाकशवासं भजे हम् ।१। निराका...