हवन या किसी भी
धार्मिक अनुष्ठान मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री भगवान को
अर्पित
करते है| स्वाहा का अर्थ है सही रीती से पहुचाना | दुसरे शब्दों में कहे तो जरुरी
भौगिक
पदार्थ को उसके प्रिय तक पहुचाना | दरअसल कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना
जा सकता है
जब तक की हवन का ग्रहण देवता न कर ले| लेकिन देवता ऐसा ग्रहण तभी कर
सकते है , जबकि
अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए| स्वाहा की
उत्पत्ति से रोचक कहानी भी जुडी
हुई है | इसके अनुसार , स्वाहा प्रकुति की ही एक
कला थी , जिसका विवाह अग्नि के साथ
देवताओं के आग्रह पर संपन्न हुआ था | भगवान
श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ए वरदान दिया था की केवल उसी के माध्यम से देवता हवन
में अर्पित की जाने वाली सामग्री को ग्रहण कर पाएंगे |
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