कलियुग का संहारक कल्कि अवतार
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कल्कि जगताधार भगवान श्री हरि के अंतिम एवं भावी अवतार हैं। कल्कि अवतार जिनका आविर्भाव कलयुग एवं सतयुग के संधिकाल में होगा। पौराणिक कथा के अनुसार जब कलयुग में पाप की सारी सीमाओं का उल्लंघन हो जाएगा। वहीं समग्र विश्व में दुष्टों का विचरण भी अत्यंत हो जाएगा, जब लोग इस युग में धर्म का परिपालन करना छोड़ देंगे, तब इन दुष्टों का संहार करने के लिए प्रभु नारायण अपना आखिरी अवतार लेंगे। प्रभु के दसवें अवतार की कथा विभिन्न पुराणों में निहित है।
कल्कि पुराण में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस प्रकार भगवान विष्णु अपना कल्कि अवतार लेकर आएंगे और इस पृथ्वी से दुष्टों का दमन करके एक बार फिर सतयुग की स्थापना करेंगे। इस पुराण में सबसे पहले मार्कन्डेय और शूकरदेव का वार्तालाप निहित है, जिसमें वह कहते हैं कि कलयुग का प्रारंभ हो चुका है और अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों से तंग आकर धरती माता नारायण के शरण में पहुंची हुईं हैं।
वह जैसे ही श्री हरि के सम्मुख जाकर उनसे अपनी व्यथा का वृत्तांत कहती है, तब भगवान उनसे अपने कल्कि अवतार की बात कहकर उन्हें आश्वासित करते हैं। तत्पश्चात भगवान विष्णु के अवतार के रूप में ही, भारत के एक राज्य उत्तर प्रदेश के सम्भल गांव में कल्कि भगवान के जन्म की बात की गई है।
उसके आगे, इसमें कल्कि भगवान की दैवीय गतिविधियों का अत्यंत सुंदर वर्णन किया गया है। इसमें कहा गया है कि कालांतर में भगवान कल्कि अपने विवाह के उद्देश्य से सिंहल द्वीप जाएंगे और वहां उनका परिचय जलक्रीड़ा के दौरान, राजकुमारी पद्मावती से होगा। राजकुमारी पद्मावती का विवाह भी कल्कि प्रभु के साथ होना ही निश्चित है। उनका अन्य कोई भी पात्र कदापि नहीं होगा।विवाह के पश्चात भगवान, देवी पद्मावती को लेकर सम्भल पहुंचेंगे और भगवान विश्वकर्मा इस नगरी को एक दिव्य सुंदर नगरी में परिणत करेंगे।
कल्कि पुराण के अलावा प्रभु के इस भावी अवतार का वर्णन श्रीमद्भागवत महापुराण में भी मौजूद है। महापुराण के बारहवें स्कन्द के अनुसार संभल ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण का वास होगा और उनका हृदय, अत्यंत ही उदार होगा।
विष्णुयश के हृदय में भगवद भक्ति पूर्ण होगी। उन्हीं के घर भगवान श्री विष्णु के कल्कि अवतार का जन्म होगा। अत्यंत अल्पायु में ही वेदों का पाठ कर लेने पर वह महापंडित हो जाएंगे और समस्त संसार में उनका महिमा मंडन होगा। कल्कि भगवान के गुरु परशुराम होंगे, जो अस्त्र विद्या और अन्य कई शिक्षा देते हुए, उन्हें भगवान शिव की उपासना करने को कहेंगे।
कल्कि भगवान का चित्रण इस प्रकार किया गया है कि भगवान अपने देवदत्त नामक घोड़े पर बैठे, हाथ में तलवार लिए असुरों का संहार करेंगे। कल्कि पुराण के इन तथ्यों से इतना तो स्पष्ट है कि भगवान श्री विष्णु के कल्कि अवतार, युगानुसार आत्मतत्व को प्राप्त कर काल और युग के परिवर्तन का कार्य करेंगे।