Monday, 11 July 2022

नरसिंह अवतार

भक्त प्रल्हाद के लिए लिया नरसिंह अवतार

भगवान श्री विष्णु के दशावतारों में चौथा अवतार नरसिंह यानी नृसिंह अवतार है। श्री मंदिर पर आज हम आपको भगवान विष्णु के इसी चौथे अवतार के बारे में बता रहे हैं। अपने परम भक्त प्रह्लाद को उसी के पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से बचाने के लिए प्रभु ने यह अवतार लिया था। प्रभु के इस अवतार और हिरण्यकश्यप के वध के पीछे एक अत्यंत मनोहारी कथा है। जिसके बारे में आज हम आपको बता रहे हैं।

जब भगवान विष्णु ने अपने वराह अवतार में दैत्य हिरण्याक्ष का वध कर दिया, तो उसके भाई हिरण्यकश्यप के क्रोध ने सारी सीमाएं लांघ दी। उसने जैसे नारायण से जीवन भर की शत्रुता करने की ठान ली हो। इसके बाद, हिरण्यकश्यप ने मध्य जल में ब्रह्मा का कठोर तप कर उनसे अजेयता और अमरत्व का यह वरदान प्राप्त किया कि उन्हें कोई भी मानव आकाश या पृथ्वी पर पराजित नहीं कर पाएगा। इसके बाद उसने देवताओं को विरक्त करना शुरू कर दिया। देवता असहाय हो गए और आखिरकार उन्हें स्वर्गलोक का त्याग करना पड़ा।

इधर, कालांतर में हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु को प्रह्लाद नाम का एक पुत्र हुआ। यह बालक श्री हरि का परम भक्त था और इसे हरिभक्ति का सार अपनी माता से ही प्राप्त हुआ था। हिरण्यकश्यप इस बात से बेहद चिंतित हो गए कि अपने पुत्र के इस बढ़ते हरि भक्ति को कैसे रोका जाए। इसलिए उसने प्रह्लाद को दैत्य गुरु शुक्राचार्य के गुरुकुल भेज दिया, परंतु वहां जाकर दैत्य शिक्षा लेने के बजाय प्रह्लाद ने अपने साथियों को नारायण की कृपा का बखान करना आरंभ किया।

अंततः जब प्रह्लाद शिक्षा सम्पूर्ण कर अपने पिता के पास पहुंचा, तो हिरण्यकश्यप ने उससे पूछा, “बताओ पुत्र, गुरुकुल में तुमने क्या शिक्षा प्राप्त की?” इस पर प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “पिताश्री! मैंने तो अब तक बस यही शिक्षा प्राप्त की है कि हमारे जीवन का एकमेव अद्वितीय सार श्री हरि ही हैं। मेरा आग्रह है, कि आप भी दुराचार का पथ त्याग कर हरि भक्ति का पथ अपना लें।”

अपने पुत्र के मुख से ऐसी बातें सुनकर हिरण्यकश्यप अत्यंत क्रोधित हो गया और उसने अपने सेवकों को उसे मार डालने के लिए कहा, लेकिन कहते हैं ना, जिसको प्रभु का आशीष प्राप्त हो, उसे भला मृत्यु भी कहां छू पाती है।

ठीक इसी प्रकार प्रह्लाद को मार डालने के सैकड़ों प्रयासों के बाद भी कोई उसका बाल तक बांका नहीं कर पाया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भी अपने भतीजे को मारने का षड्यन्त्र बनाया, लेकिन इस षड्यन्त्र में वह अपने ही प्राण गंवा बैठी। कोई दूसरा चारा ना देखते हुए तब हिरण्यकश्यप ने स्वयं ही प्रह्लाद को मारने का निर्णय कर लिया और प्रह्लाद को दरबार में बुलाया गया।

प्रह्लाद के दरबार में आते ही हिरण्यकश्यप ने उससे पूछा, “क्यों रे प्रह्लाद? क्या तेरा विष्णु हर जगह उपस्थित होता है?” प्रह्लाद ने बड़ी ही नम्रता से उत्तर देते हुए कहा, “हाँ पिताश्री! भगवान विष्णु तो सर्वत्र हैं, सर्वव्यापक हैं, वह हर जगह समाए हुए हैं।”

पुत्र के इस उत्तर को सुनकर क्रोध से तमतमाता चेहरा लिए उसने फिर उससे पूछा, “क्या तेरे विष्णु इस खंभे में मौजूद हैं?” प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “अवश्य! वह इस खंभे में भी समाहित हैं।” अब हिरण्यकश्यप ने अपने पहरियों को प्रह्लाद को उस खंभे से बांध देने के लिए कहा और उसे मारने के लिए आगे बढ़ने लगे। प्रह्लाद ने भी तब श्री हरि का नाम जपना आरंभ कर दिया।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद की ओर बढ़ते हुए कहा, “अगर तेरे विष्णु इस खंभे में भी मौजूद हैं, तो आकर तेरी रक्षा करें।” बस इतना कहना था कि सहसा उस खंभे में दरार पड़ने लगी और अचानक से उस खंभे में से प्रभु के नरसिंह अवतार का आगमन हुआ।

इसके बाद भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को निश्चेष्ट कर अपनी जंघा पर लेटा दिया और कहने लगे, “देख हिरण्यकश्यप! मैं ना मानव हूं और ना तू जमीन पर है और ना ही आसमान में। अब तेरा अंतिम समय आ गया है।” इतना कहते ही, प्रभु ने हिरण्यकश्यप का संहार करते हुए अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।

अगर ईश्वर के प्रति हमारी भक्ति निस्वार्थ एवं सच्ची हो तो किसी भी अवस्था में प्रभु हमारे लिए अवश्य कोई पथ प्रदर्शित करते हैं।

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