Monday, 11 July 2022

बुद्ध अवतार

बुद्ध अवतार में दिया अष्ठांगिक मार्ग का ज्ञान

बुद्ध अवतार

‘बुद्धं शरणं गच्छामि, धर्मं शरणं गच्छामि।’ भगवान बुद्ध के शरण में स्वयं को समर्पित करने की सीख देता यह कथन सम्पूर्ण बौद्ध धर्म का मूल सार है। समग्र विश्व को प्रेम एवं शांति की शिक्षा प्रदान करने वाले भगवान बुद्ध, स्वयं प्रभु श्री हरि के नौवें अवतार हैं। कहा जाता है कि श्री कृष्ण अवतार के पश्चात जब एक बार फिर संसार में हिंसा और अधर्म का प्रकोप बढ़ने लगा तब भगवान विष्णु ने बुद्ध का अवतार लेकर इस जगत को अहिंसा व शांति का दिव्य ज्ञान दिया।

कथानुसार एक समय पृथ्वी पर दैत्यों की शक्ति इतनी बढ़ गई थी स्वयं देवताओं को भी उनका भय होने लगा था। जब उन अत्याचारी असुरों ने देवराज इंद्र से राज्य की लालसा करते हुए पूछा कि हमारा साम्राज्य स्थिर रहे और हमसे यह कोई ना छीन सके इसका कोई उपाय बताएं। तब इंद्र ने उन्हें बताया कि सुस्थिर शासन के लिए वेदविहित आचरण करते हुए यज्ञ का आयोजन करना आवश्यक है। इंद्र की बात मानकर दैत्यों ने तब वैदिक आचरण के साथ महायज्ञ का आयोजन करना आरंभ कर दिया।

इसके फलस्वरूप दैत्यों की शक्ति और क्षमता में वृद्धि होने लगी, जो समस्त संसार के लिए बिल्कुल भी मंगलप्रद नहीं थी। असुरों की इन कारसाजियों को देखते हुए चिंतित देवगण तब भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और उनसे इसका उपाय बताने को कहा। इसके बाद ही भगवान श्री विष्णु ने बुद्ध का अवतार धारण करते हुए उन दैत्यों की तरफ प्रस्थान किया। उनके हाथ में एक मार्जनी थी, जिससे वह मार्ग को बुहारते हुए चलते जा रहे थे।

वहीं जैसे ही बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे, तो दैत्यों ने सर्वप्रथम उनके आने का कारण पूछा और तब बुद्ध ने उन्हें यज्ञ ना करने का उपदेश दिया, क्योंकि यज्ञ करने से जीव हिंसा होती है। इसके साथ ही यज्ञ की अग्नि में ना जाने कितने निष्पाप प्राणी जल कर भस्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध के दिए उपदेशों से सभी दैत्यगण अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने यज्ञ करना बंद कर दिया, जिससे उनकी शक्तियां भी कम होने लगी और इस मौके का लाभ उठाते हुए देवताओं ने अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में हुआ था। बचपन में गौतम बुद्ध का नाम सिद्धार्थ था, जिनके जन्म के पश्चात उनका लालन पालन महारानी गौतमी ने किया था। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोधन, इक्षवाकु वंश के राजा थे। इसी वंश में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने भी जन्म लिया था, जो विष्णु के सातवें अवतार भी हैं।

सिद्धार्थ बचपन से ही बड़े ही शांतिप्रिय बालक थे और एक दिन सहसा इस संसार से विरक्त होकर ब्रह्मतत्व की प्राप्ति हेतु उन्होंने अपना घर-परिवार सब त्याग दिया। घूमते-घूमते सिद्धार्थ राजगीर पहुंचे और वहां उनका साक्षात आलर कलाम से हुआ जो संन्यास काल में उनके प्रथम शिक्षक भी बने थे। कालांतर में जब सिद्धार्थ पैतीस वर्ष के हुए, तो एक दिन वह एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठे साधना कर रहे थे।

कहा जाता है, इसी दिन उनकी यह साधना सफल हुई और उन्हें जीवन के परम तत्व बोधिसत्व की प्राप्ति हुई। इस प्रकार वह सिद्धार्थ से बुद्ध बने और पीपल का वृक्ष, बोधिवृक्ष कहलाया। सीधे-साधे लोकभाषा में अपने धर्म चक्र का प्रवर्तन करने के कारण भगवान बुद्ध की महिमाओं ने बड़ी ही सरलता से भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित किया। जब भगवान धर्म, अहिंसा और शांति की वार्ता कहते, तो सभी उनमें मंत्रमुग्ध से हो जाते थे।

श्री हरि के नौवें अवतार, भगवान बुद्ध ने सम्पूर्ण संसार को ज्ञान का मार्ग प्रदान किया और उनकी शिक्षाओं से बौद्ध धर्म की स्थापना और उसका प्रचलन हुआ। कई प्राचीन और हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी उनके दिखाए मार्गों का वर्णन मिलता है। भगवान बुद्ध ने लोगो को सदैव अहिंसा के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था। उनके उपदेश में लोगो को अपने दुःख, उसके कारण और निवारण का अष्ठांगिक मार्ग प्राप्त हुआ।

इतना ही नहीं, भगवान बुद्ध ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में गायत्री मंत्र का भी खूब प्रचार प्रसार किया था। इसके अलावा, उनके बताए मध्यमार्ग, अंतर्दृष्टि और चार अध्याय सत्य के परिपालन से भी मानव जाति का साक्षात जीवन के परम तत्व से हुआ था।

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